Nirjala Ekadashi : निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है, जो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आती है। निर्जला एकादशी साल में एक बार आती है, यह व्रत साल भर की सभी एकादशियों का फल देने वाला माना जाता है. निर्जला एकादशी का व्रत निर्जला (बिना अन्न और जल के) रखा जाता है. यह व्रत पापों से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति और भगवान विष्णु की विशेष कृपा पाने का व्रत है
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 06 जून 2025 को देर रात 02 बजकर 15 मिनट पर प्रारंभ होगी और 07 जून 2025 को सुबह 04 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि में निर्जला एकादशी व्रत 06 जून को रखा जाएगा।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत के नियम
निर्जला एकादशी का व्रत श्रद्धा और भक्ति से करें। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा, उपवास और दान से जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो पूरे साल अन्य एकादशियों का व्रत नहीं रख पातें है।
- जल का सेवन न करें; इस दिन जल का सेवन वर्जित है।
- चावल और नमक का सेवन न करें।
- तामसिक भोजन और शराब से दूर रहें।
- झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद से दूर रहें।
निर्जला एकादशी का पौराणिक कथा
इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार, पांडव और उनकी माता कुंती सभी एकादशी का व्रत रखते थे लेकिन पांडवों में भीम भोजन के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे और अन्य एकादशी व्रतों का पालन नहीं कर पाते थे। महर्षि व्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी, जिससे उन्हें सभी एकादशियों का व्रत नहीं करना पड़े और सभी एकादशियों का पुण्य मात्र इसी एक निर्जला एकादशी का व्रत रहने से प्राप्त हो सके। इसलिए इसे “भीमसेनी एकादशी” या “पांडव एकादशी” या निर्जला एकादशी भी कहा जाता है।
विशेष मुहूर्त:
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:02 से 4:42 बजे तक।
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:39 से 3:35 बजे तक।
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:16 से 7:36 बजे तक।
- निशिता मुहूर्त: रात 12:00 से 12:40 बजे तक।
पूजा सामग्री:
श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, पीला फूल, गंगा जल, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, पीला चंदन, मिष्ठान।
एकादशी पूजा विधि:
- प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीला वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी) से अभिषेक करें।
- फूल, अक्षत, चंदन, दीपक और धूप अर्पित करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- रात्रि जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करें।
एकादशी व्रत में दान का महत्व:
एकादशी व्रत में दान का विशेष महत्व है। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, छाता, पंखा, जूता, आसन, पंखा, सोना और गोदान आदि दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
जल दान: जल से भरा एक मिट्टी का घड़ा दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
एकादशी के दिन विशेष उपाय:
पीपल के वृक्ष की पूजा करें: इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करें और उसे जल अर्पित करें; क्योकि पीपल में भगवन विष्णु का वास माना गया है।
तुलसी के पौधे की पूजा करें: घर में लगे तुलसी के पौधे के पास शुद्ध गाय के घी से 11 दीपक जलाएं और तुलसी की 11 परिक्रमा करें। यह उपाय पारिवारिक जीवन में खुशहाली लाता है।
पंजीरी का भोग अर्पित करें: भगवान विष्णु को पंजीरी का भोग अर्पित करें, जिसमें तुलसी के पत्ते डालें। यह उपाय समस्त परेशानियों से छुटकारा दिलाता है।
चांदी का सिक्का रखें : व्रत के दिन पूजा करके चांदी का सिक्का या कोई सिक्का देवी लक्ष्मी और विष्णु जी को चढ़ाएं। अगले दिन पारण के बाद इस सिक्के को अपने पर्स में रखें। यह उपाय आर्थिक खुशहाली लाता है।
एकादशी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
एकादशी के दिन तुलसी की पूजा अवश्य करें लेकिन कुछ बातो का ध्यान भी रखे।
- एकादशी वाले दिन तुलसी के वृक्ष को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
- एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते को भूल कर न तोड़े। भगवान् को अर्पित करने के लिए एकादशी से एक दिन पहले पत्ते तोड़ कर रख ले।
- एकादशी के दिन तुलसी माता भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती है अतः कभी भी एकादशी के दिन तुलसी में जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
- भगवान को कोई भी भोग लगाए उसमे तुलसी का पत्ता अवश्य रखे क्योकि बिना तुलसी के भगवान कोई भोग स्वीकार नहीं करते हैं ।
- एकादशी के दिन ब्रम्हचर्य का पालन करें।
- झूठ, गाली-गलौज और आलास से बचना चाहिए।

साल में एकादशी की संख्या:
साल में 24 एकादशी होती हैं, क्योंकि हर महीने दो एकादशी (एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में) होती हैं. यदि अधिकमास या मलमास होता है तो एकादशियों की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है.
साल की चार बड़ी एकादशी निर्जला एकादशी, आमलकी एकादशी, पापमोचिनी एकादशी और देवउठनी एकादशी हैं।
शारीरिक और मानसिक लाभ
व्रत के दौरान भोजन और जल का त्याग करने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में सुधार होता है।
व्रत के कारण शरीर में जमा विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, जिससे शरीर स्वच्छ और हल्का महसूस करता है।
व्रत के दौरान शरीर में ऑटोफैगी (Autophagy) की प्रक्रिया सक्रिय होती है, जिससे क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का नाश होता है और नई कोशिकाओं का निर्माण होता है।
भोजन और जल के अभाव में शरीर की ऊर्जा का उपयोग मानसिक कार्यों में होता है, जिससे एकाग्रता में वृद्धि होती है।
स्वास्थ्य संबंधी सावधानियाँ
गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गुर्दे की बीमारी, गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को निर्जला व्रत से बचना चाहिए।
व्रत के दौरान शरीर में पानी की कमी न हो, इसके लिए व्रत तोड़ते समय धीरे-धीरे तरल पदार्थों का सेवन करें। अचानक से भर पेट पानी या कोई तरल पदार्थों का सेवन न करें।
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